स्मार्ट सिटी को
लेकर दूसरा आलेख लिखना ज़रूरी हो गया था क्यूंकि कई मित्रों और पाठकों से इस पर
अलहदा अलहदा प्रतिक्रिया मिली हैं. स्मार्ट सिटी मिशन अपने आप में एक अकेला
कार्यक्रम नहीं अपितु इसे अमृत, स्वच्छ भारत मिशन, डिजिटल इंडिया आदि के साथ जोड़कर
देखना ज़रूरी हैं. अमृत, प्रोजेक्ट के आधार पर हैं और स्मार्ट सिटी मिशन क्षेत्र के
आधार पर हैं परन्तु दोनों का ही धेय्य शहरी क्षेत्र का विकास करना हैं. पूर्व
सरकार ने जेएनयुआरएम प्रारंभ किया था जिसके तेहत शहरो के सुविधाओं में सुधार किया
गया था. आप इन सभी मिशन को किसी भी नाम से या यूँ कहे नेता के नाम से पुकार
लीजिये, इनकी योजना एक जैसी हैं और कमियां भी एक जैसी हैं.
शहरीकरण को लेकर यदि
अलग अलग सिद्धांतो को पढा जाये, चाहे भौगोलिक दृष्टिकोण से अथवा आर्थिक दृष्टिकोण
से अथवा सामाजिक दृष्टिकोण से, ये पाया जाता हैं की सभी में कहा गया हैं की किसी
भी क्षेत्र को एक टापू के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता हैं. जब भी किसी शहर
को आगे लेकर योजना बनायीं जाती हैं तो पहले आसपास के क्षेत्र (फ्रिंज एरिया) को विकसित करने का मॉडल तैयार किया जाना चाहिए; क्यूंकि ये सामान्य सी बात हैं की
यदि भोपाल विकसित हो जाए परन्तु सीहोर, रायसेन, होशंगाबाद पिछड़ा रह जायें तो इन
शेहरो के नागरिक भोपाल आयेंगे अपने नौकरी के सिलसिले में और बहुत से लोग यही बस
जायेंगे. ऐसा होने से भोपाल कितना ही विकसित क्यूँ न हो जाए, इसकी व्यवस्था चरमरा
जायेगी. अभी जो योजना बनायीं
गयी हैं उसमे इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया गया हैं. साथ ही स्मार्ट सिटी मिशन
डॉक्यूमेंट में स्पष्ट रूप से यह लिखा हुआ हैं की रेट्रोफिटिंग (शहर में सुधार),
रीडेवलपमेंट (शहर नवीनीकरण), ग्रीनफ़ील्ड डेवलपमेंट की रणनीति अपनाई जायेगी. सरल
भाषा में कहे तो मौजूदा व्यवस्था में सुधार और कुछ नए निर्माण किये जायेंगे. इन
सभी बातों में बार बार जनता से रायशुमारी की बात कही गयी हैं. कही भी पास के शहरों
के विकास की बात नहीं की गयी हैं.
इन
सभी योजनायों के लिए वित्त कहाँ से लाया जाएगा यह मूल बात हैं. सरकार ने स्मार्ट
सिटी मिशन के लिए 48 हज़ार करोड़ रुपये अगले 5 साल के लिए आबंटित किया हैं. अमृत के
लिए 50 हज़ार करोड़ रुपये अगले 5 साल के लिए आबंटित किये गए हैं. राज्यों को अपनी ओर
से भी समान राशी मिलानी होगी और 14वे वित्त आयोग के सुझाव हैं की प्रत्येक राज्य
के नगर निगम अपने आय के स्त्रोत बढाए. साथ ही पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट
पार्टिसिपेशन) को भी अपनाया जा सकता हैं. अब इन सब आकड़ों का आम आदमी से क्या लेना
देना? लेना देना यह हैं की हम पर कर बढ़ा दिए जायेंगे जिनके लिए ज़रूरी नहीं हैं की
सेवाए भी दी जाए. दूसरा ये की पीपीपी मोड में जिन निजी खिलाड़िओं का चयन किया जाएगा,
क्या वो प्रक्रिय निष्पक्ष होगी? क्या हमे कर के साथ इन सेवाओं को प्राप्त करने के
लिए दुबारा सेवा शुल्क देना होगा? 100 करोड़ रूपए प्रति शहर केंद्र द्वारा दिया
जाएगा और इतनी ही राशी राज्य सरकार द्वार भी मिलायी जाएगी, क्या 200 करोड़ से कुछ
सार्थक हो पायेगा?
यदि
मध्य प्रदेश के दो शहरों की ही बात की जाए- भोपाल और इंदौर तो हम पायेंगे की यहाँ
के नगर निगम अपने काम सही रूप से नहीं कर पा रहे हैं. भोपाल में एक ओवर ब्रिज विगत
4 साल से बन रहा हैं परन्तु अभी तक काम पूरा नहीं हो पाया हैं और यदि समाचार
पत्रों की माने तो इसकी गुणवत्ता इतनी ख़राब हैं की अभी से इसके दिवार में दरार नज़र
आ रहे हैं. ये उधारण देना इसलिए आवश्यक हैं की जो सेवाएँ हमे पहले से ही मिलने
चाहिए वो अभी नहीं मिल रहे हैं और जब स्मार्ट सिटी, अमृत, डिजिटल इंडिया, स्वच्छता
मिशन के नाम से करोड़ो रुपये आयेंगे तो क्या बन्दर बाट नहीं होगा जैसा अभी तक होता
आया हैं? नगर निगम के पार्षद एवं महापौर जिन वादों के साथ चुन के आते हैं उनमे से
50 प्रतिशत भी पुरे नहीं किये जाते हैं. अधिकांश सड़कों पर बिजली और प्रकाश नहीं
हैं. भोपाल के कई नयी चौड़ी सड़के तो रात के समय जुए और शराब के अड्डे हैं और यही
हाल इंदौर का भी हैं. एक भारी बारिश में तथाकथित नाले उफान पर आ जाते हैं और एम पी
नगर, न्यू मार्केट जैसे स्थानों पर ही पानी भर जाता हैं और लोग अपने गाड़िओं में
धक्के मारते नज़र आते हैं.
प्रधान
मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मन की आवाज़ सुनकर तो लगता हैं की वे सम्पूर्ण देश
का विकास करना चाहते हैं और गाँव को भी पूर्ण रूप से अपने कार्यक्रमों और योजनाओं
से लाभान्वित करना चाहते हैं. परन्तु इस मिशन से गाँव को कोई लाभ नहीं होगा, शायद
ग्रामीण अंचल और शहरो के बीच की दूरी और बढ़ जाएगी. पूर्व में भी हमने असंतुलित
विकास के मॉडल को अपनाया था परन्तु तब की परिस्थिति और अब की परिस्थिति में ज़मीन
आसमां का अंतर हैं. उस समय हमारे पास इतना धन नहीं था की हम सभी क्षेत्रों का एक
साथ विकास योजना को क्रियान्वित कर सके परन्तु आज तो हम विश्व में अपना लोहा मनवा
चुके हैं और ऐसे में असंतुलित विकास योजना बुद्धिमत्ता नहीं दर्शाता हैं. प्रदेश
के मुख्य मंत्री जी ने भी अपने मुख्य मंत्री के रूप में 10 वर्ष पुरे किये हैं और
अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहाँ की शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हम
पिछड़े हुए हैं. ऐसे में स्मार्ट सिटी तथा उसे जुड़े कर्येक्रमो को लाना कितना ओचित्यपूर्ण
हैं?
आज
जनता को अपने राजनैतिक पसंद नापसंद से ऊपर उठकर केवल अपने और अपने शहर के विकास के
लिए सोचना होगा. पुरानी शराब को नए बोतल में परोसकर जनता को छलावे में नहीं रखा जा
सकता हैं. जो सेवाए उसका अधिकार हैं उसके लिए सरकार नया नाम देकर और समय नहीं ले
सकती. आज राजधानी में लोगों को सरकारी अस्पतालों में 3 से 4 घंटे डॉक्टर के लिए
इंतज़ार करना पड़ता हैं, अपने राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर पहचान पत्र आदि के लिए
नगर निगम कार्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं और रिश्वत भी देनी पड़ती हैं. अपनी नाली
साफ़ करवाने के लिए पार्षद के हाथ जोड़ने पड़ते हैं, सड़क, पानी तो भूल जाईये.
हमारे
मुख्य मंत्री जी से निवेदन हैं की नीति आयोग की अगली बैठक में वो जब जाए तो ये बात
रखे की केवल नामकरण से कुछ नहीं होगा. स्मार्ट सिटी के लिए जो जनता अपने सुझाव दे
रही हैं उसे केवल वेबसाइट तक ही न रहे परन्तु योजना में संशोधन कर, जनता की आवाज़
को भी सुने.
Good....
ReplyDeleteसटीक। जनता की मर्जी से ही स्मार्ट होना चाहिए शहरों को।
ReplyDeleteसटीक। जनता की मर्जी से ही स्मार्ट होना चाहिए शहरों को।
ReplyDeleteभोपाल में स्मार्ट सिटी के नाम पर शिवाजी नगर में 60 मंजिल के twin tower का सपना दिखाया जा रहा है। TT nagar redensification की हालत हम सब जानते हैं ।
ReplyDeleteVery balanced, very well written post. It looks at the issue from all perspectives and makes a point for the problems that may lie ahead.
ReplyDeleteNicely depicted. Content covers all the related topics and I do agree with the views cited in the post
ReplyDeleteNicely depicted. Content covers all the related topics and I do agree with the views cited in the post
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