Monday, November 23, 2015

स्मार्ट सिटी - स्मार्ट नागरिक




स्मार्ट सिटी मिशन, प्रधान मंत्री मोदी जी के चुनावी वादों में से एक रहा हैं जिसको लेकर वो काफ़ी गंभीर प्रतीत हो रहे हैं. वर्तमान कुछ समय से उनके सभी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय उद्बोधनों में स्मार्ट सिटी के परिकल्पना की बात रहती हैं. स्मार्ट सिटी की कोई सर्व व्यापी परिभाषा नहीं हैं और ये राज्य तथा नागरिकों की परिकल्पना पर निर्भर करता हैं की वे किसे स्मार्ट सिटी मानते हैं अथवा वे अपने शहर को विश्व के किस शहर के जैसा देखना चाहते हैं. यदि केंद्र सरकार के मिशन को पढा जाए तो यह समझ में आती हैं की सरकार सम्पूर्ण आधुनिक आधारभूत सेवाओं से लेज़ शहर चाहते हैं, जो आने वाले कई दशक तक जनसँख्या के बढते आकार के अनुरूप अपने नागरिकों को सर्वोत्तम सेवाए दे सके. यदि आप नागरिकों की दृष्टिकोण को भी उसमे देखे तो पायेंगे की वो बहुत अधिक अलग नहीं हैं सरकार के योजना से, अंतर इतना हैं की सरकार विश्व स्तरीय बात कर रहा हैं और नागरिक आधारभूत सेवाओं की जो स्मार्ट सिटी की कल्पना में निहित हैं.
भारत में कोई भी मिशन अथवा जन कल्याणकारी कार्यक्रम प्रारंभ किया जाए और उसमे राजनीति न हो, यह संभव नहीं हैं. जो भी दल सत्ता में होती हैं वह केवल गुणों की बात करती हैं और सभी विपक्षी दल केवल अवगुणों की बात करती हैं, परन्तु वास्तव में यह सब इतना श्वेत- श्याम नहीं होता हैं. इस मिशन के साथ भी यही दुर्भाग्य हैं की राजनैतिक दल अपने हितो की रक्षा में आम नागरिक की सुविधा और विकास को कही भूल न जाए. यह जो विरोधाभास सरकार की योजना और आम जनता के मन की बात में हैं वो शायद इसलिए हैं क्यूंकि आम आदमी अपने जीवन में आज भी सड़क, बिजली, पानी की समस्यायों से जूझ रहा हैं. चुनावी वादे केवल चुनावों तक ही सिमित रह जाते हैं और ज़मीन सच्चाई कुछ और ही होती हैं. और इसके लिए नागरिकों को यह समझना बहुत आवश्यक हैं की राजनैतिक दल कोई भी हो, योजनाओं को संचालित करने का तथा क्रियान्वित करने का काम प्रशासन एवं उसके अधिकारी- कर्मचारी ही करते हैं. राजनैतिक इच्छा शक्ति का होना बहुत ज़रूरी हैं परन्तु प्रणाली यदि भ्रष्ट हैं कोई भी कार्यक्रम कितना ही अच्छा क्यूँ न, हो बहुत सफल नहीं हो पायेगा और इसके लिए मनरेगा एक बहुत बड़ा उदहारण हैं.
स्मार्ट सिटी में बेहतर यातायात, सतत बिजली और पानी की पूर्ती, बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, मल निकासी की बेहतर प्रणाली, नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए प्रदुषण को कम करने के उपाय, मनोरंजन के बेहतर साधन, पार्किंग की सुविधा आदि की बात कही गयी हैं. और इस हेतु विभिन्न राज्यों ने योजना बनाना प्रारंभ कर दिया हैं. पूरे देश से कुल 100 शहरों को स्मार्ट सिटी में परिवर्तित किया जाएगा जिसमे से 20 शहरों पर पहले चरण में काम होगा और दुसरे  चरण में शेष 80 शहरों को विक्सित किया जाएगा. उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक 13 शहरों को इस सूचि में रखा गया हैं. मध्य प्रदेश के 7 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाया जाएगा जिनमे हैं राजधानी भोपाल, उदयोग नगरी इंदौर, शाही नगरी ग्वालियर, सिंघस्त की नगरी उज्जैन जिसको लेकर शंका थी, जबलपुर, सतना, और सागर. मुख्य मंत्री जी उज्जैन के स्थान पर बुरहानपुर चाहते थे क्यूंकि उनका मानना था की सिंघस्त के चलते उज्जैन नगर काफ़ी विक्सित हो जाएगा परन्तु अंत में उज्जैन को ही शामिल किया गया. भोपाल के लिए योजना बड़ी तेजी से बनायीं जा रही हैं और उम्मीद हैं की वर्ष 2016 तक प्रारंभिक कार्य प्रारंभ हो जाएगा.
अब इस सब में कुछ प्रश्न बड़े तेजी से लोगों के मन में आ रहे हैं जिनका समाधान जरुरी हैं क्यूंकि शहर इन्ही का हैं. केंद्र सरकार ने इस मिशन के लिए कुल 48000 करोड़ रुपये 5 वर्ष के लिए रखे हैं जो की 100 करोड़ प्रति शहर प्रति वर्ष के लिए हैं. इतनी ही धनराशी राज्य सरकार को भी मिलनी होगी. अब प्रश्न यह हैं की मध्य प्रदेश जैसी सरकार इतना बड़ी राशि कहाँ से लाएगी क्यूंकि इस वक़्त प्रदेश के ऊपर कर्ज बहुत अधिक हैं. दूसरा अभी तक जो राज्य सरकार और नगर निगम ने बैठके की हैं परियोजना को लेकर वे बहुत अधिक सफल नहीं रही हैं क्यूंकि सभी हितग्राहिओं को शामिल नहीं किया गया. समाचार पत्रों की माने तो एक कंपनी ने तो 5 करोड़ की केवल बैठक के नाम पर ही सरकार को चपत लगा दी. इसीलिए बहुत ज़रूरी हैं की सरकार राजनीति से ऊपर उठकर सभी लोगों को मंच दे क्यूंकि केंद्र सरकार की योजना में नागरिकों की भागीदारी को महत्व दिया गया हैं.
तीसरा महत्वपूर्ण प्रश्न हैं की वर्तमान सेवाओं को ठीक करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही हैं? आज भी बहुत से अवैध निर्माण हो रहे हैं जिनकी ओर निगम उदासीन हैं. पार्किंग के लिए दी गयी ज़मीन पर निर्माण कर दिए गए हैं जिस कारण आये गए दिन जाम लग जाते हैं, जिसके लिए भोपाल के एम पी नगर को उद्धरण के रूप में देखा जा सकता हैं. नर्मदा जल के लाइन बिछ गयी हैं परन्तु पानी का दूर दूर तक कोई आस दिखाई नहीं दे रही हैं. बिजली चोरी जोर शोर से की जा रही हैं और केवा झुग्गिवासिओं द्वारा ही नहीं परन्तु कई पोश कॉलोनी में भी यही आलम हैं. जगह जगह पानी के पाइप फूटे हुए हैं और सड़के धुल रही हैं. मल निकासी की समस्या बहुत बड़ी हैं भोपाल में क्यूंकि जब भी किसी कॉलोनी अथवा अन्य निर्माण कार्य की योजना की जाती हैं तो इसे लेकर केवल खाना पूर्ति की जा रही हैं. नालों की स्थिति भी बहुत ख़राब हैं, थोड़े से बारिश में शहर लबालब हो जाता हैं. यातायात सेवाओं के मामले में तो भोपाल बहुत ही पीछे हैं और येही कारण हैं की व्यक्तिगत वाहनों की संख्या बड गयी हैं जिससे न केवल पार्किंग, जाम की समस्या उत्पन्न हो रही हैं परन्तु प्रदुषण का स्तर भी बहुत बड़ गया हैं. केंद्र सरकार की योजना में साइकिल ट्रैक्स को लेकर भी बात की गयी हैं जो भोपाल के लिए बहुत ज़रूरी हैं. शहर में जो ब्रिज हैं उनका रखा रखाव नहीं किया जा रहा हैं और प्रति दिन सैकड़ों लोग अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं. अपशिष्ट प्रबंधन तो हैं ही नहीं और भानपुरा पर यदि आप चले जाये तो 2 मिनट भी खड़े रहना दूभर हैं. सरकार सभी कार्यो को ई सेवा में परिवर्तित कर रही हैं जिसके लिए इन्टरनेट सुविधा मूलभूत हैं परन्तु आलम यह हैं की आधे से ज्यादा शहर में ब्रॉडबैंड सुविधा नहीं हैं. सड़कों को लेकर जितनी कम बात की जाए उतना अच्छा हैं क्यूंकि आज सड़क बनती हैं और परसों खुद जाती हैं और 2 दिन बाद उसपर मलबा चढ़  दिया जात हैं ताकि आप अपनी गाडी में बैठ उठ की सवारी का मजा ले सके.
चौथा प्रश्न हैं की नागरिकों की भूमिका क्या हैं, इस पूरे मिशन में- सरकार और तंत्र को गाली देना अथवा अपने दायित्वों का पालन करना और जहाँ ज़रूरत पड़े वहा आधिकारों का उपयोग कर अपने शहर की खूबसूरती और रूह को बनाये रखना? लेखक और उसके साथिओं द्वारा आज से कुछ वर्ष पूर्व एक व्यवस्था प्रारंभ की गयी थी की हर घर से कचरा एकत्रित करना और उसे बायोडिग्रेडेबल और नॉन बायोडिग्रेडेबल में बाटना ताकि अपशिष्ट प्रबंधन किया जा सके. इसके लिए एक आदमी को लगाया गया था और रेह्वासिओं से यह निवेदन किया गया था की वे अपने घर का कचरा हमारे व्यक्ति को ही दे. इसके लिए किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जा रहा था और हमने इसमें विज्ञानं के छात्रों की मदद ली थी. कुछ महीने तो ये काम अच्छा चला परन्तु फिर एक आई ए एस साहब के कारण सारा कार्येक्रम स्वः हो गया. उन्होंने इसको लेकर बहुत हल्ला किया और हमारी साथी जो ये एकत्रित करने ठेला लेकर जाती थी उसे भी बहुत अपशब्द कहे. और ये बात अरेरा कॉलोनी की हैं और जो लोग भोपाल को जानते हैं वे समझ सकेंगे के यहाँ किस प्रकार के लोग रहते हैं. ये तब किया गया जब नगर निगम ने घर से कचरा उठाने का काम प्रारंभ नहीं किया था. आज जब घरों से कचरा लिया जा रहा हैं तो भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं हो पायी हैं क्यूंकि मानसिकता वाही पुरानी हैं. यही हाल स्वच्छ भारत मिशन का भी हुआ जिसमे लोगों ने सेल्फी तो ले ली परन्तु गन्दगी फ़ैलाने का कम वैसे ही हैं. येही कुछ हाल पार्किंग को लेकर भी हैं. हमारा बस चले तो हम अपनी गाडिओं को दुकानों के अन्दर ही ले जाकर खड़ी कर ले और यदि बड़ी गाडी हैं तो बात ही क्या. सड़क के लिए कर दिया हैं तो इसलिए वो हमारी बपोती हैं. और ऐसे कई चीजे हैं जो हम कर रहे हैं अपने सुन्दर भोपाल को गन्दा करने के लिए.
स्मार्ट सिटी मिशन बहुत अच्छा हैं, इसकी उत्पत्ती पर न जाकर और युपीए बनाम एनडीए की बहस 
में न पड़कर, हम यदि इसे केवल शहरीकरण की दृष्टिकोण से देखे तो बेहतर होगा. साथ ही सरकार 
की भूमिका इसमें अहम होगी यह स्पष्ट हैं और इसीलिए ज़रूरी हैं की काम देते समय सरकार भाई 
भतीजा वाद न करके केवल शहर और नागरिकों की बात सोचे. हर शहर की अपनी एक आत्मा होती 
हैं जो उसे नायाब बनती हैं, ऐसे ही हमारे भोपाल के गंगा जमुनी सभ्यता, इसकी हरी भरी पेड़ो से 
ढका वातावरण, हमारे तालाब इसकी पहचान हैं जिसके इर्द गिर्द ही योजना बनायीं जानी चाहिए. 
आने वाले समय की जनसँख्या वृद्धि को भी ध्यान में रखा जाए और सैटेलाइट टाउनशिप को इसी 
प्रकार विक्सित करे. नागरिकों को अपने हितो की रक्षा करनी होगी क्यूंकि आने वाली पीड़ी के लिए 
ये ही जिम्मेदार हैं.
 
http://epaper.subahsavere.news/c/7327017 
  

1 comment:

  1. Eyeopener ones ... much reforming and enough alarming ...(y)

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