Monday, October 5, 2015

दादरी काण्ड, गौ मास, हिन्दुत्व और हम



सबसे पहले तो मैं आप सभी से क्षमा चाहूंगी की मैंने इस सप्ताह अपना वादा नहीं निभाया और हिन्दी भाषा के अपने तीसरे और अंतिम लेख को न प्रस्तुत करते हुए, मैं विगत सप्ताह के सबसे महतवपूर्ण घटना पर अपने विचारों को कलम कर रही हूँ. बहुत चाहा की हिन्दी भाषा और शिक्षा पर ही लेख भेजू संपादक महोदय के पास पर अंतरात्मा नहीं मानी. यदि समाज ही नहीं बचेगा तो भाषा और उसके भविष्य पर बात करना बैमानी होगी.
28 सितम्बर को दादरी में हुए घटना से आप सभी भली भाति परिचित हो गए होंगे अभी तक और उस पर कम से कम 20 एक लेख भी पड़ चुके होंगे. जब माइक्रो ब्लॉग्गिंग साईट ट्विटर पर मैंने यह खबर सबसे पहले पड़ी तो विश्वास न हुए की किसी के गाय के मास खाने पर उसे मार दिया गया. अपनी प्रतिक्रीय ज़रूर दी परन्तु लगा की अभी जब खोजबीन होगी तो और कोई कारण सामने आ जाएगा. परन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं. और जो पहले दिल दहलाने वाली घटना थी, अब शर्मसार करने वाली और भविष्य के लिए एक चेतावनी के रूप में समझ आई.
इस घटना ने कुछ प्रमुख प्रश्न उठाये हैं. पहला तो राजनैतिक हैं जिस पर आप लोग बहुत कुछ सुन पड़ रहे हैं. यदि एक कोने में साक्षी महाराज जैसे लोग हैं जो न जाने किस हिन्दू धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं, अखलाक खान के परिवार को दी जाने वाली सहायता राशि को तुष्टिकरण बता कर अलगाववाद को और हवा दे रहे हैं, तो वही दूसरी ओर आज़म खान जैसे नेता हैं जो सयुक्त राष्ट्र में इस बात को ले जाने की बेतुकी बात कर रहे हैं.
हमारे संविधान ने हमे यह अधिकार दिया हैं की हम क्या खाए और क्या पीये, इसलिए हमारे भोजन पर से यदि हमे कोई मार डाले, इससे और शर्मनाक क्या हो सकता हैं. इस विषय पर किसी और दिन आप लोगों से चर्चा करुँगी, बस विवेकानंद जी की एक बात दोहराना चाहूंगी कि, उन्होंने काहा था की भारत में लोगों के पाक्घर में भगवान् बसते हैं.
दूसरा प्रश्न महिला के सम्मान, उसकी सुरक्षा और अस्मियता से जुड़ा हैं. जब वो दरिन्दे अखलाख जी के घर घुसे और उनके साथ हिंसा करने लगे, तो उनकी बेटी उन्हें बचाने आई तो उसके साथ बदसुलूकी तो हुई. परन्तु जो बाद में सत्तारुड पार्टी के प्रतिनिधि ने कहाँ वो और बड़ी हिंसा थी. उन्होंने कहाँ की उसके इज्ज़त के साथ तो कोई नहीं खेला? तो क्या ये महोदय कहना चाह रहे थे की ऐसे में यदि बेटी की आबरू भी चली जाती तो उसे मात्र एक घटना माना जाता? क्या हमारा समाज इस निचले स्टार पर आ गया हैं?
तीसरा एक आर्थिक सवाल हैं. चूँकि मैं इस विषय को थोड़ा बहुत समझती हूँ, इसलिए बार बार एक प्रश्न मन में गूँज रहा हैं कि उन सब गाय का क्या जो सडको पर आवारा घुमती रहती हैं, और कभी पॉलिथीन, कभी ज़हरीली चीज़े खाकर मर जाती हैं? और उन सब लोगों का क्या होगा जो गाय के मास की बिक्री कर अपना भरण पोषण करते हैं? और जो गाय के मास का निर्यात करते हैं, उसमे बहुत से हिन्दू व्यवसायी भी हैं, तो अब उनके साथ क्या व्यव्हार किया जाएगा? जो देसी गाय का व्यवसाय करते हैं, उन्हें भी बहुत कम लाभ होता हैं और बीबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार ये घाटे का सौदा हैं, तो क्या अब केवल विदेश गाय माता का ही पालन पोषण किया जाएगा? गाय को इंजेक्शन लगाकर दूध निकालना जो गाय और इस दूध का सेवन करने वाले दोनों के लिए ही घातक हैं, हमारे हिन्दू समाज में माननीय हैं? ऐसे और भी कई प्रश्न हैं जो हमारे दोगलेपन को सामने लाते हैं.
यहाँ मैं राजनीतिज्ञों के भूमिका पर कुछ नहीं कहना चाहूंगी क्यूंकि मेरे एक मित्र ने पिछला आलेख पड़कर कहाँ था की नेताओं को गरियाना आसन हैं, अपने गिरेबान में झांक के देखना भी ज़रूरी हैं. इसलिए आज मैं आत्म्लोकन पर ही बात करुँगी की यह हमारा कैसा समाज हैं जो एक तरफ डिजिटल इंडिया के सपने देख रहा हैं और दूसरी तरफ हमारे घर के फ्रिज में रखे सामन से  हमारा आंकलन कर रहा हैं? ये कैसा समाज हैं जो बाहर तो लड़किओं के पाव पूजता हैं परन्तु उसे बेआबरू करने में सोचता भी नहीं? ये कैसा समाज हैं जो व्यक्तिगत तौर पर व्यवसाय से केवल लाभ कमाना चाहता हैं परन्तु सामाजिक तौर पर धर्म के नाम पर काम को अच्छा या गन्दा बताता हैं? ये कैसा समाज हैं जहाँ हमारा युवा शिक्षित होते हुए भी पाषण युग के व्यक्ति जैसा व्यवहार करता हैं? ये कैसा समाज हैं जो धर्म को कुछ लोगों या रीती रिवाजों तक सिमित रखता हैं? ये कैसा समाज हैं जो यह नहीं समझता की कुछ राज्यों में अभी चुनाव होने को हैं और हमारे भावनाओं का नजायज लाभ उठाया जा राह हैं?
अनगिनत प्रश्न हैं जिनका जवाब हम जानते तो हैं परन्तु मानना नहीं चाह रहे हैं. जिस दिन ह्रदय और दिमाग साथ चलने लगेंगे, ये दादरी की घटनाये नहीं होंगे और फिर किसी अख़लाक़ को भोजन के कारण मरना नहीं पड़ेगा.

7 comments:

  1. अच्छा लिखा है तनिमा जितना भी लिखो यह ऐसा मौज़ू है की काम लगता है जि चाहता है कैसे इन लोगों को समझाओ के तुम्हें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ये अंगरेजों के वारिस जो इन्हें विरासत में हमारे जान औ माल दे गएं हैं खेलने के लिए ,ज़ुलफिकार

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  2. अच्छा लिखा है तनिमा जितना भी लिखो यह ऐसा मौज़ू है की काम लगता है जि चाहता है कैसे इन लोगों को समझाओ के तुम्हें अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ये अंगरेजों के वारिस जो इन्हें विरासत में हमारे जान औ माल दे गएं हैं खेलने के लिए ,ज़ुलफिकार

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  3. जुल्फी भाई जिस दिन इस देश की जनता ये समझ जायेगी की चाहे ओवैसी हो या साक्षी महाराज, सभी केवल अपने राजनैतिक रोटी सेक रहे हैं, उस दिन आधे कष्ट दूर हो जायेंगे

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  4. It is important to not just question politicians but to question the moral graph of our society as a whole, as you have done rightly here.
    People cannot keep giving the excuse of being naive to keep playing in the hands' of politicians' on the same issues.
    As observers of our society it is our duty to raise our voice and point at the fissures and problems present in our society.Highly condemnable incident of beef murder has brought out the reality of 'Incredible India'.

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    1. That is what is important especially for the youth and the educated. The sad part is that the perpetrators of this heinous crime are young educated boys.

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  5. People of developed countries eat both beef & pork and still way ahead of us we only waist our time in fighting over trivial issues to gain political mileage. Our spectrum has on one end people beating the beef out of innocent people and on the other end people like Shobha Dey daring those people with blatant statements. One thing is certain that our country with multi religio-cultural base has no future with rightists of any type.

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    1. Polarization on the basis of religion has led to the downfall of many countries. Hardliners have no place in our diverse country

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