गत सप्ताह मैंने आप
लोगों से हिन्दी विश्व सम्मलेन और हमारे व्हट्स एप्प समूह के सम्बन्ध में बात की
थी और हंसी ठिठोली में हिन्दी भाषा की दुर्गति की भी बात की. चूँकि मैंने आप लोगों
से, हिन्दी विषय पर दो और भाग लिखने का वादा किया था , सो चली आई. वादा किया तो निभाना
पड़ेगा. आज आप लोगों से हिन्दी को लेकर खेली जा रही राजनीति पर चर्चा करना चाहती
हूँ.
अब
आप लोग यह तो जानते हैं की हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं
हैं. हमारा देश विवधता के देश हैं और भाषा को लेकर भी यह विविध्ता देखने को मिलती
हैं. ऐसे में यह कहना की हिन्दी को प्राथमिकता दी जाय कहाँ तक सही हैं.
समय
समय पर हिन्दी भाषा की श्रेष्ठता को लेकर हल चल होती रहती हैं और हमारे राजनेता जो
हिन्दी में उद्बोधन देते हैं, अपने आप को श्रेष्ठ एवं देश प्रेमी बताते हैं. और हम
अबोध नागरिक उनके इस झांसे में आ जाते हैं.
परन्तु क्या ऐसा
करने से हिन्दी को वो स्थान मिल जाएगा जिसके लिए इतने यतन किये जा रहे हैं? अब
देखिये राजनीति कैसे खेली जाती हैं. एक और हमारे राजनेता हिन्दी को बढावा देने को
कहता हैं और कुछ राजनैतिक दल अपने को हिन्दी सभ्यता का कर्णवीर बताते हुए हम सब से
तन, मन और धन से हिन्दी को स्वीकारने का आदेश देते हैं. पर दादा यदि आप इन नेताओं से पूछ बेठिये की इनके बच्चे किन
विद्द्यालयों में पढ रहे हैं तो ये आग बबूला हो जाते हैं. यदि आप इनसे नौकरशाही के
बारे में पूछे की वे किस भाषा में रिपोर्ट और फाइल की नोटिंग लिखते/पढते हैं, तो
ये आपको आँखें दिखने लगते हैं.
अब प्रश्न यह हैं की
दोहरे मापदंड क्यूँ. उनके बच्चे अंग्रेजी स्कूल में जाए और हमारे बच्चे हिन्दी को
बढावा देने के लिए हिन्दी भाषी स्कूल में. और ये तब जब सम्पूर्ण विश्व एक सूत्र
में बंध रहा हैं. व्यवसाय की भाषा अंग्रेजी हैं और युवाओं के लिए ये भाषा जानना
मज़बूरी हैं. कंप्यूटरकरण के युग में जब प्रोग्रामिंग अंग्रेजी में हो सकती हैं तो
हिन्दी को कैसे प्रासंगिक बनाया जाए.
राजनीति दिखावा का
खेल हैं और कौन आपको कितना भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकता हैं, इस पर इनकी
सफलता निर्भर करती हैं. इसलिए हिन्दी भाषा से प्रेम को देश प्रेम से जोड़ दिया गया
हैं और यदि आपको हिन्दी नहीं आती तो आप दुनिए के तुच्छ लोगों में से हैं और आपको
आत्म ग्लानी का भरपूर बोध करवाया जाएगा. परन्तु ऐसा क्यूँ जब सम्विन्धान हमे किसी
भी भाषा का प्रयोग करने की स्वाधीनता देता हैं.
अब हमारे नेताओं के
पास दो विकल्प हैं, या तो वो अपने वचन और कर्म एक ही स्थान पर रखे, मतलब जो बोल रहे हैं, वो करके भी
दिखाया. दूसरा संविधान में बदलाव लाये और हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाये.
अंत में हमारे घुमकड़
प्रधान मंत्री जी से भी एक अनुरोध हैं की विश्व क जो थोड़े देश रह गए हैं उनके
यात्रा सूचि से, वह वे कृपया अपने उद्बोधन हिन्दी में दे, और संयुक्त राष्ट्र के
सुरक्षा समिति में सदयस्ता की गुहार के साथ साथ हिन्दी को भी व्यवसाय की भाषा
घोषित करवाए.
http://www.readwhere.com/read/c/6696975
http://www.readwhere.com/read/c/6696975
Language is an important part of this new era of nationalism. In fact, linguistic nationalism has always been important when "imagining communities" (Anderson, 1983).
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