Sunday, September 6, 2015

उत्तर भारत के कृष्ण बनाम दक्षिण भारतीय कृष्ण

आज सुबह किसी के घर से निकलते वक़्त कुछ महिलाये बीते कल के जन्माष्टमी आयोजनों की चर्चा कर रही थी. स्वाभाव वश कदम थोड़े धीरे हो गए और जो सुना उसने सोचने को मजबूर कर दिया. कृष्ण मंदिरों की बात हो रही थी तो एक ने कहाँ की यहाँ आस पास कोई कृष्ण मंदिर नहीं हैं, दुसरे ने जवाब दिया की हैं, तो पट पहली ने कहाँ, अरे वो तो मद्रासियों का हैं. अपने गाडी में जाते जाते सोचा की अभी तक तो भगवानो को दिनों के हिसाब से बाटा था, अब क्षेत्र के आधार पर भी बाट दिया. उत्तर भारतीय कृष्ण और दक्षिण भारतीय कृष्ण कब से हो गए?
फिर सोचा की शायद समाज में ध्रुवीकरण या अलगावाद बहुत बड गया हैं- जाती, धर्म, वर्ग, लिंग, क्षेत्र, खान पान, उप जाती, आदि आदि कितने ही नामो पर विभाजन का एक सुनियोजित कार्यक्रम चल रहा हैं. आज से कुछ दो दशक पहले तक मुझे अपने गोत्र, या वर्ण के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी. मुझे घर पर केवल ये बताया गया था की मैं हिन्दू हूँ और जब कभी माँ कोई पूजा करवाती तो गोत्र पड़ा जाता था. कॉलेज में आई तो जाती अधिक समझ में आने लगी क्योंकि जिन छात्रों को जाती के नाम से वजीफ़ा मिलता था उनको नीची नज़रों से देखा जाता था और कुछ साथ वाले (खासकर वे जो इंजिनीरिंग या मेडिकल में फेल हो गए थे) बड़ी बुलंद आवाज़ में इसकी खिलाफत करते थे.
नौकरी में आई तो वर्ण व्यवस्था बहुत अच्छे से समझ आई क्योंकि रैगिंग के पहले दिन वर्ण और गोत्र पूछे गए तो मैंने गोत्र तो बता दिया पर वर्ण को लेकर थोडा कमजोर जवाब था. उस दिन घर जाकर बाबा से दोने समझे और ये भी पुछा की घर पर ये हमे क्यूँ नहीं सिखाया. उनसे उनके सभी मित्र जो घर आते थे उनके वर्ण के बारे में पुछा. उन्होंने अपने दो टूक अंदाज़ में कह दिया की आदमी का करैक्टर माइने रखता हैं, बाकी सारी चीज़े बकवास हैं.
आज वे 80 वर्ष के हैं और मैंने भी इन दो दशकों में बहुत से अनुभव लिए हैं और आसपास जो देखती हूँ, वो मन को परेशान कर देते हैं. आज मेरे घर के बच्चों को अपना गोत्र भी पता हैं और वर्ण भी, और लगातार वो दुसरे के वर्ण और धर्म के बारे में उत्सुक रहते हैं. शायद इसलिए की वे आज के बच्चे हैं- जो खाप के बारे में पड़ते हैं, जिन्होंने जीन्स को बैन होते सुना हैं, जो हिन्दू आतंकवाद और इस्लामिक आतंकवाद के बड़े में पड़ते हैं, जो ये देखते हैं की सरकार इस पर ज्यादा जोर दे रही हैं की मध्यन भोजन में अंडा दे सकते हैं की नहीं.
शायद वे ही उत्तर दे पाए की उत्तर भारत का कृष्ण कौन और दक्षिण भारत का कृष्ण कौन?

5 comments:

  1. सच है। रंग वर्ण और भाषा के आधार पर बंट कर भी हम साल में दो दिन अनेकता में एकता का राग अलापते हैं। चिंता जायज है भगवान भी बंट गए तो....भारत को बंटते देर नहीं लगेगी क्योंकि बस वही तो एकता का बंधन हैं।

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  2. सच है। रंग वर्ण और भाषा के आधार पर बंट कर भी हम साल में दो दिन अनेकता में एकता का राग अलापते हैं। चिंता जायज है भगवान भी बंट गए तो....भारत को बंटते देर नहीं लगेगी क्योंकि बस वही तो एकता का बंधन हैं।

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  3. Beautifully written sociological post on the questions of caste - varna, gotra, jati and how we deal with them in our daily lives, the changing perceptions and their relevance in our present life. Also, there have always been diversity in Hindu religion, the wide spectrum of religion that allows different versions to flourish in North and South. South Indians see Ravana as one of them for North Indians he is a villain. Dravidian struggle for identity actually had played and had emphasized on the North South divide. But, every strand of identity is important today.

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  4. Beautifully written sociological post on the questions of caste - varna, gotra, jati and how we deal with them in our daily lives, the changing perceptions and their relevance in our present life. Also, there have always been diversity in Hindu religion, the wide spectrum of religion that allows different versions to flourish in North and South. South Indians see Ravana as one of them for North Indians he is a villain. Dravidian struggle for identity actually had played and had emphasized on the North South divide. But, every strand of identity is important today.

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  5. Beautifully written sociological post on the questions of caste - varna, gotra, jati and how we deal with them in our daily lives, the changing perceptions and their relevance in our present life. Also, there have always been diversity in Hindu religion, the wide spectrum of religion that allows different versions to flourish in North and South. South Indians see Ravana as one of them for North Indians he is a villain. Dravidian struggle for identity actually had played and had emphasized on the North South divide. But, every strand of identity is important today.

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