इस
सप्ताह के आलेख लिखने में बड़ी कठिनाई हुई क्यूंकि कई मुद्दे मन में घूम रहे थे.
हिन्दी और शिक्षा भी अभी शेष था, राजनीति में भी हलचल बहुत हैं और समाज में नित्य
नए सवाल उठते रहते हैं. दो बातों से आज के आलेख का विषय तय हो गया- पहला एक
राष्ट्रिय स्तरीय सेमिनार जिसकी मैं भाग थी और दूसरा आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य
के नवीनतम अंक में चाप आलेख जिसमे गौ हत्या को वेदों से जोड़ा गया हैं.
राष्ट्री
सेमिनार का विषय पर्यावरण से जुड़ा था और ईआईए यानि की एनवायरनमेंट इम्पैक्ट
अस्सेस्मेंट था, जिसमे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने भारत के आधुनिक मंदिरों का उल्लेख
किया तो सहसा मन हुआ की पंडित जी के बारे में पढ ले और पांचजन्य के आलेख के बाद तो
और भी लगा की पंडित नेहरु को आज के परिपेक्ष में लिखना और पढना अनिवार्य हैं.
हम
सभी जानते हैं की नेहरु जी एक ब्राह्मण कुल में जन्मे थे परन्तु उन्होंने कभी भी
धार्मिक परम्पराओं को अधिक महत्व नहीं दिया और राजनीति और समाज सेवा में उन्होंने
हमेशा सभी को साथ लेकर चलने की बात की और किया भी. 1947 में जब देश आज़ाद हुआ था और
बटवारे की आग पूरे देश में सुलग रही थी तो दो दिन बाद ही पंडित नेहरु प्रधान
मंत्री के रूप में पंजाब पहुचे जहाँ सिख और मुस्लमान आपस में लड़ रहे थे और
उन्होंने सभी से अपील की , कि ये हिंसा छोड़ दे और नए राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दें. अभी दादरी के घटने
के कितने दिनों बाद हमने अपने प्रधान मंत्री जी का वक्तव्य सुना और वो भी संतोषजनक
नहीं था क्यूंकि वे राज्य सरकार पर संपूर्ण ठीकरा फोड़ रहे थे.
आज
100 स्मार्ट सिटी बनाने की बात की जा रही हैं और 4700 करोड़ रूपए एक सिटी को दिए
जाने की बात हो रही हैं. हमारा शहर भोपाल भी स्मार्ट सिटी के सूचि में सम्मिलित
हैं परन्तु ये देख आश्चर्य होता हैं की एक ओवर ब्रिज बनाने में 7 साल लग गए तो
क्या स्मार्ट सिटी नियमित समय अवधी में बनना संभव हैं? वही पंडित नेहरु ने 5 साल
में आईआईटी, भाकर नंगल, हीराकुद बाँध बनवा दिए थे, नव रत्न कंपनी की नीव रख दी थी
और साथ ही लघु उद्योगों के लिए भी निति तैयार कर ली थी. साथ ही वे जानते थे की कृषि
के बिना उद्द्योगों का काम नहीं हो सकता हैं इसलिए पहली पंच वर्षीय योजना में कृषि
को महत्व दिया गया. आज कृषि और कृषकों की हालत किसी से छुपी नहीं हैं. केवल
महाराष्ट्र में ही 800 से अधिक किसानो ने आत्महत्या की हैं. और 7 रेस कोर्स रोड पर
रह रहे महोदय अपने विपक्षिओं को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं. पुराने
योजनाओं को अपने नाम से आरम्भ कर सेल्फी तो लिए जा रहे हैं परन्तु जहाँ भी
जिम्मेदारी की बात आती हैं वे पूर्व सरकार को गलत बता देते हैं. वे यदि गाँधी जी
और नेहरु जी का उल्लेख करते हैं तो ज़रूरी यह भी हैं की वे उनसे कार्यप्रणाली भी
सीखे.
आज
40 साहित्यकारों ने अपने साहित्य अकादेमी पुरूस्कार लौटा दिए हैं और सरकार के कई
मंत्री इसे देशद्रोह या लाफ्फ्बाज़ी मान रहे हैं. कही न कही पत्रकारों के लिए भी
जिस प्रकार की भाषा और रवैया अपनाया जा रहा हैं वह दमनकारी हैं. नेहरु जी के साथ
का एक वाक्या ये स्पष्ट करता हैं की वे पत्रकारों और लेखकों के लिए क्या सोचते थे .
एक बार किसी कार्यक्रम में वे मंच पर चढ़ रहे थे तो उनका पैर फिसल गया तो किसी
पत्रकार ने उन्हें थाम लिया और कहाँ प्रधान मंत्री जी संभलकर, नेहरु जी ने पलटकर
कहाँ की ज़रूरत नहीं हैं क्यूंकि यदि मैं देश के निर्णय लेने में सही पथ से भटक जाऊ
तो ये चौथा स्तम्भ हैं मुझे सँभालने के लिए.
ऐसा
ही कुछ नज़रीय उनका भ्रष्टाचार को लेकर भी था. एक बार वे चुनाव रैली में कांग्रेस
के प्रत्याशी के लिए प्रचार करने गए और मंच पर उन्हें ज्ञात हुआ की प्रत्याशी पर
भ्रष्टाचार के आरोप थे. उन्होंने मंच से ही कह दिया की जानकारी नहीं थी इसलिए इस
व्यक्ति को पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया परन्तु जनता अपने विवेक का उपयोग करे.
और आज ये माहौल हैं की वर्तमान प्रधान मंत्री अपने सारे भ्रष्ट नेताओं को और
मंत्री – मुख्य मंत्रिओं को बचाने की बात कर रहे हैं और उल्टा विपक्ष पर दोषआरोप
कर रहे हैं.
नेहरु
जी बहुत स्पष्ट थे की महिलाओं को देश के विकास में बराबरी का योगदान देना हैं और
इसलिए उन्हें अधिकार भी बराबरी के दिए जाने चाहिए. पहले चुनाव के समय जब उनसे पूछा
गया की किसे मताधिकार होगा तो उन्होंने महिलाओं और पुरुषों की समानता के अधिकार
बताये. स्वतंत्रता पूर्व 1928 में नेहरु
जी ने अपने एक भाषण में कहा था की किसी भी देश के विकास की जानकारी देश के महिलाओं
के विकास से ज्ञात होती हैं. 1961 में
दहेज़ प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. आज महिलाओं की स्थिति बद से बदतर
होती जा रही हैं और मेरे पिछले आलेख में मैंने उत्तर प्रदेश के एक घिनोने कृत्य का
उल्लेख भी किया था. दो दिन पूर्व दिल्ली में 2 छोटी बच्चिओं के साथ दुष्कर्म हुआ
परन्तु हमारे किसी बड़े नेता और प्रधान मंत्री जी की कोई टिप पढने को नहीं मिली.
ऐसे
कई दृष्टान्त हैं जो नेहरु जी के अग्रणी सोच और परिपक्वता को दर्शाते हैं. किस
प्रकार उन्होंने अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी के साथ व्यवहार किया, इसके भी कई
उल्लेख हैं और हम कैसे भूल सकते हैं की आदरणीय पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल
बिहारी बाजपाई जी के वाक्पटुता से पंडित जी इतने प्रभावित हुए थे की उन्होंने कहा
था की वे एक दिन देश का नेत्रित्व करेंगे.
कहने लिखने को बहुत कुछ हैं और ज़रूरी हैं
किसी भी देश के जनतंत्र के लिए की वहां की राजनितिक सोच परिपक्व हो और साथ ही
सत्ता में विपक्ष की बात सुनने की क्षमता हो.
आभार,,,, बेख़ौफ़ लिखते रहें.... चौथा स्तम्भ ही सही राह दिखा सकता है ,,,नेताओं को भी,, जनता को भी..
ReplyDeleteBohut badiya per har baat k do pahlu hote hai
ReplyDeleteAap desh ke vartman halat par nirbhik hokar likhe... kyonki aaj ki tarikh me sab kuchh bik chuka he... spasht lekhan ki bahut kami he....
ReplyDeleteआप सभी का धन्यवाद
ReplyDeleteविषय की गंभीरता इसी बात से जाहिर है की आप जैसी कलमकार भी पशोपेश में पड़ गईं , दोनों ही मुद्दे गंभीर हैं चाहे वह पर्यावरण का हो या दूसरा जिस पर पर आपने गहन चिंतन जाहिर किया है। आज यह बात तो तय है की समय रहते यदि चेता न गया तो कल ये छोटे छोटे लगने वाले विषय नाशूर बन कर न केवल हमारे समाज को वरन सारे देश के लिए पीड़ा का कारन बन जाएंगे बहुत साधुवाद आपको और आपकी लेखनी को यूँ ही देश की आत्मा को इक रखने का प्रयाश करती रहें।
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