आज पूरा विश्व महात्मा गांधी जी का जन्मदिन मना रहा है। पूरा विश्व उनके अहिंसा नीति का पूजारी है। वे केवल देश को आजादी दिलाने में ही सक्षम नही रहे अपितु उन्होने अपने कर्मो, अपने आचरण से लोगो को यह भी बताया की सार्वजनिक जीवन में एक नेता को किस प्रकार रहना चाहिये। उन्होंने अपने अनशन, मौन व्रत, अनुषासन से उस वक्त के युवाओं को एक नई राह दिखाई। अपने संपूर्ण जीवन में बापू ने शिक्षा किस प्रकार दी जानी चाहिये, शिक्षक का आचरण कैसा होना चाहिये, मौलिक शिक्षा की आवष्यकता आदि पर काफी काम किया जो आज भी प्रासंगिक है।
महात्मा जब दक्षिण अफ्रिका में थे तो उन्होने अपने बच्चो को स्कूल नही भेजा, उन्होने घर पर ही स्वंय ने पढ़ाया। अंग्रेजी के लिये अलग से शिक्षक रखा। जब उन्होने टालस्टाअ आश्रम बनाया तो वहां भी सभी बच्चो को स्वंय ने पढ़ाया। बच्चे अनुशासित हो इसके लिये उन्होंने स्वंय को अधिक अनुशासित किया। गांधीजी का मानना था कि छात्र का आचरण, प्रतिबिम्ब होता है शिक्षक के आचरण का। शिक्षक के प्रति आदर और सममान तभी छात्र के मन में आता है ज बवहशिक्षक वही करे जो वह कहें। बापू ने मूल्य शिक्षा पर भी बहुत ध्यान दिया। खेल-कूद से जैसे शरीर बनता है, विचारों और मस्तिषक के वरजिष से आचरण बनता है।
हम यदि इन सभी बातो को आज की परिस्थिति में देखे तो हम पाते है कि वर्तमान शिक्षा के पतन का बहुत बढ़ा कारण यही है कि माता -पिता शिक्षा पर ध्यान नही देते, मातृभाषा का उपयोग बहुत कम हो गया है,शिक्षक के लिये शिक्षा देना उसके रोजी-रोटी का एक जरिया मात्र है। मूल्य शिक्षा पर ध्यान नही दिया जा रहा है। पर्सनेलिटी डेवलेपमेंट का व्यक्तित्व विकास की कक्षायें गली-गली में हो रही है जहां भाषा, कपड़े पहनना, साक्षात्कार आदि की टेªनिंग दी जा रही है परन्तु छात्रो के दिमाग की वरजिष नही कराई जा रही है। बच्चा पहली कक्षा से 12 वीं कक्षा तक माॅरल साइंस पढ़ता जरूर है परन्तु आत्मसात नही करता है उन मूल्यो को, यही कारण है कि आज समाज में भ्रष्टाचार, दुराचार, वैमन्स्यता इतनी बढ़ गयी है। मानवीय मूल्यो का पतन हुआ है।
यदि हम जिम्मेदारी की बात करे तो माता-पिता,शिक्षक, समाज सभी जिम्मेदासर है। सभी ने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेरा है। आज माता-पिता के पास समय नही है इसलिये पैसे से वह समय की पूर्ति करना चाहते है, शिक्षक के उपर दबाव इतना है िकवह इसे केवल अपना दायित्व मानता है, समाज इतने भागो में बट गया है कि वह हर बात को जाति, धर्म के चश्मे से देखता है।
आज यदि बापू जीवित होते तो उन्हें बहुत कष्ट होता। हमारे विकास को देखकर वह खुश भी होते परन्तु कही ना कही वह युवा पीढी मूल्यो के हनन को देखकर आहत होते। आज का हमारा युवा पहले की तुलना में अधिक पढ़ा-लिखा, तर्क संगत, तकनीक से लैस है पर मूल्यो मैं वह पिछड रहा है।
क्यो ना आज के दिन हम -आप यह प्रण ले के घर के बच्चो की शिक्षा का केवल फीस ही नही देगे, अपितु उसकी जिम्मेदारी भी लेगे। मैं एक शिक्षक और समाज सेवी के रूप में यह संकल्प लेती हूं कि छात्रो से उतना ही अपेक्षा करूगीं जितना मैं अपने आप से अपेक्षा करती हूं। साथ ही मूल्यो कि शिक्षा देते हुये उन्हें और आत्मसात करूँगी।
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