भारत में और मध्यप्रदेष में राजनैतिक सरगरमी जोरो पर है। सभी पार्टीयां अपने हिसाब से काम कर रही है और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इस प्रयास में सोषल मीड़िया भी अहम भूमिका निभा रही है। प्रत्येक दिन सभी पार्टीयो द्वारा एक नया विषय लिया जाता है जिस पर दिन भर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहता है। भाजपा ओर कांग्रेस अधिक क्रियाषील है क्योकि दोनो के पास ही बडे नेता है, सत्ता में रहने का अनुभव है और देष के बडे हिस्से पर राजनैतिक दखल रखते है।
इस सोषल मीड़िया पर युवाओ की सरगर्मी अधिक रहती है। अभी देखने मे आ रहा है कि युवाओ में सहनषक्ति कम हो रही है और दूसरो के विचारो को सुनने की क्षमता नही है। युवा पीढ़ी के लिये बहुत जरूरी है कि वह किसी विचारधारा से जुडे, भले ही वह कांग्रेस हो, बीजेपी हो, वामपंथ हो अथवा कोई और। साथ ही अपनी विचारधारा के लिये मुखर होना भी आवष्यक है। परन्तु विचारधारा का सर्मथन करना और कट्टरवाद के बीच बहुत हल्की रेखा होती है। कब सर्मथन कट्टरता का रूप ले लेता है यह मालूम ही नही चलता और कट्टरता के साथ समस्या यह है कि वह तर्कसंगत नही होता है। वह अपनी बात मनवाने के लिये किसी भी सीमा तक जाने के लिये तैयार हो जाता है और उग्र रूप ले लेता है। आजकल सोषल मीड़िया में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। आलोचना करते समय लोग अपनी मर्यादाओ को भूल जाते है और अपषब्दो का प्रयोग करते है। सोषल मीडिया का नियम है कि आप व्यक्तिगत टिप नही दे सकते है न ही अपषब्दो का प्रयोग कर सकते है।
वैचारिक मतभेद हो सकते है और प्रजातंत्र में होने भी चाहिये इस बहस मे कोई भी सही या गलत नही होता। आलोचना तर्क संगत होनी चाहिये। इन्टरनेट और सोषल मीडिया एक ऐसा मंच है जो हमे बेबाक रूप से अपनी बात रखने की आजादी देता है परन्तु दूसरे मनुष्य के मानव अधिकार और मानवता को अपमानित करने का अधिकार नही देता।
इस सोषल मीड़िया पर युवाओ की सरगर्मी अधिक रहती है। अभी देखने मे आ रहा है कि युवाओ में सहनषक्ति कम हो रही है और दूसरो के विचारो को सुनने की क्षमता नही है। युवा पीढ़ी के लिये बहुत जरूरी है कि वह किसी विचारधारा से जुडे, भले ही वह कांग्रेस हो, बीजेपी हो, वामपंथ हो अथवा कोई और। साथ ही अपनी विचारधारा के लिये मुखर होना भी आवष्यक है। परन्तु विचारधारा का सर्मथन करना और कट्टरवाद के बीच बहुत हल्की रेखा होती है। कब सर्मथन कट्टरता का रूप ले लेता है यह मालूम ही नही चलता और कट्टरता के साथ समस्या यह है कि वह तर्कसंगत नही होता है। वह अपनी बात मनवाने के लिये किसी भी सीमा तक जाने के लिये तैयार हो जाता है और उग्र रूप ले लेता है। आजकल सोषल मीड़िया में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। आलोचना करते समय लोग अपनी मर्यादाओ को भूल जाते है और अपषब्दो का प्रयोग करते है। सोषल मीडिया का नियम है कि आप व्यक्तिगत टिप नही दे सकते है न ही अपषब्दो का प्रयोग कर सकते है।
वैचारिक मतभेद हो सकते है और प्रजातंत्र में होने भी चाहिये इस बहस मे कोई भी सही या गलत नही होता। आलोचना तर्क संगत होनी चाहिये। इन्टरनेट और सोषल मीडिया एक ऐसा मंच है जो हमे बेबाक रूप से अपनी बात रखने की आजादी देता है परन्तु दूसरे मनुष्य के मानव अधिकार और मानवता को अपमानित करने का अधिकार नही देता।
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