Wednesday, July 8, 2015

व्यापम का खूनी खेल

अभी तक पूरे विश्व को "व्यापम" नाम के धोकेधड़ी की जानकारी मिल गयी हैं. वाशिंगटन पोस्ट और बीबीसी ने भी इस खबर को एहमियत दी हैं. पहली बार भारतीय मीडिया पर भी २४ घंटे व्यापम छाया हैं. विगत 3 वर्षो से मध्य प्रदेश में इस मुद्दे को लेकर राजनैतिक सरगर्मी बनी हुई हैं. यदि हम भ्रष्टाचार की बात करे तो शायद हमे इस घोटाले में अन्य घोटालो से बहुत अधिक अंतर नहीं दिखेगा, परन्तु यदि आप इसके पन्ने पलटेंगे तो पायेंगे की ये केवल लालच या राजनैतिक निम्नता की बात नहीं हैं.

भारत में इसके पूर्व भी बहुत से घोटाले हुए हैं और जिस प्रकार की हमारी प्रणाली हैं, आगे भी होते रहेंगे परन्तु किसी भी घोटाले में इतने लोगों की संदिग्ध हालातों में मौत नहीं हुई हैं. ये क्या केवल साक्ष्य छुपाने हेतु लोगों को हटाया जा राह हैं या इसके पीछे की कहानी कुछ और हैं. समय समय पर प्रदेश के मुख्य मंत्री एवं उनकी अर्धांगिनी का नाम भी आया हैं और राजनैतिक गलियारों में ये माना जाता हैं की षदियंत्र के सारे तार 1 श्यामला हिल से जुड़े हुए हैं. ७ जुलाई को मुख्य मंत्री जी ने आख़िरकार कहाँ की सिबिअई से इसकी जांच कराने पर उनको अथवा उनके दल को कोई आपत्ति नहीं हैं. 6 जुलाई तक वे तथा देश के गृह मंत्री सब कुछ माननीय उच्च न्यालय के हाथ में हैं कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे थे. ऐसा क्या हुआ २४ घंटे में या यूँ कहें की ५ मिनट के फ़ोन कॉल में की मुख्य मंत्री जी जांच के लिए मान गए.

जैसे मैंने पहले भी लिखा की ये एकमात्र घोटाला हैं जिसमे करीब ५० लोगों की मौत हो गयी हैं जो इससे सम्बंधित थे या आरोपी थे. सबकी मृत्यु साधारण नहीं हैं. अधिकांश में ऐसा लग रहा हैं की उन्हें जेहर दिया गया हैं (समाचार पत्रों के आधार पर). क्या राज़ छिपा रहे थे ये सभी. जेल में भी जितने आरोपी अभी बंद हैं उनकी सुरक्षा पर भी सवाल या निशान खड़े हो गए हैं. जो एस आई टी इसकी जांच कर रही हैं उसपर भी भेद भाव करने के आरोप हैं. एक उच्च स्तरीय आई ए एस आधिकारी पर जांच एजेंसी बहुत मेहरबान रही हैं और व्यापन के निर्देशक रहे त्रिवेदी जी ने कहाँ हैं की उन्होंने ४२ लाख रूपए दिए थे. ऐसे कई और उद्धरण हैं पक्षपात के.

एक महतवपूर्ण बात जिसपर अभी सामाजिक या राजनैतिक चर्चा जोर नहीं पकड़ रही हैं वह हैं की जिन लोगों को लाभ पहुचने की कोशिश की गयी हैं वे सब कही न कही आर एस एस अथवा बीजेपी से जुड़े हैं. यदि आप इतिहास उठाकर देखेंगे की जितने भी फासिस्वादी नेता अथवा संगठन रहे हैं उन्होंने हमेशा पूरी प्रणाली को अपने रंग में रंग दिया हैं (हमारे यहाँ भागुअकरण हो रहा हैं). जो व्यक्ति २२-२३ वर्ष की आयु में सरकारी नौकरी में घुसा दिया जाएगा, वह जीवन भर उसी आदर्श को अपनाएगा जिसने उसे ये नौकरी दी हैं. हमारे प्रदेश में डॉक्टर, शिक्षक, पंचायत अधिकारी, पटवारी, लेकाधिकारी, आप नाम लीजिये और उस नौकरी में धन्द्लेबाज़ी  की गयी हैं क्यूंकि ये सभी परिक्षये व्यापम द्वारा करवाई गयी. ये किसी भी राष्ट्र और समाज के लिए घटक हैं. भारत की पहचान उसकी विविध्ता हैं, धर्मं, जाती, भाषा, खानपान, रंग, वर्ग, सभी में अंतर हैं परन्तु अनेकता में ही एकता हैं. यदि हम केवल एक ही धर्म या विचारधारा के लोग चाहते हैं, तो यह अब संभव नहीं हैं.

व्यापन घोटाले ने एक पूरी पीड़ी को बर्बाद कर दिया हैं. आज मध्य प्रदेश का कोई भी युवा डॉक्टर, शिक्षक, पटवारी काम पर निकलता हैं तो लोग उसे घृणा और तिरस्कार की दृष्टि से देखता हैं. और वही दूसरी ओर जो मेधावी छात्र थे वे पुरे प्रणाली से आज उदसीन हैं. आज का युवा "जुगाड़" की भाषा सीख रहा हैं, न की मेहनत की.

समय आ गया हैं की हम समाज के रूप में जागृत हो और अपनी चेतनाओ का उपयोग करे. हो सकताहैं हम वर्तमान सत्ताशील दल के मतदाता हैं परन्तु आँख देखि मक्खी भी कैसे निगले.
जागृत हो! संवेदनशील हो!

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