वर्तमान समय में मध्ह्मान भोजन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा खाद्य सुरक्षा विधायिका को लेकर बहुचर्चे है। बिहार के छपरा जिले में मध्याहान भोजन खाने के बाद जब 22 बच्चो ने अपनी जान गवा दी तो पूरे देश में हर रोज एक नई घटना सामने आई। इस घटना ने एक बार फिर जन कल्याणकारी कार्यक्रमो के क्रियान्वयन पर उंगली उठाई। परन्तु यह कहना अतिषोक्ती होगी की ऐसे सभी कार्यक्रमो को बंद कर देना चाहिये।
यूपीए 2 द्वारा खाद्य सुरक्षा अधिकार पिछले 4 वर्षो से लाने के अथक प्रयास किये गये। आखिरकार पिछले महिने यह बिल अध्यादेष के रूप में आयी। यह अधिकार ग्रामीण क्षेत्र के 75 प्रतिषत और शहरी क्षेत्र के 50 प्रतिषत लोगो को फायदा पहुंचायेगा। इसके चार मुख्य क्षेत्र है ; सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो सस्ता अनाज ;0-6 तक के बच्चो को पोषण युक्त आहार ;स्कूल के छात्रो को मध्ह्मान भोजन कार्यक्रम द्वारा भोजन जो पोषक हो ;गर्भवती महिलाओं को भोजन तथा नगद लाभ। इस योजना में लोगो को सस्ते अनाज दी जायेगी।
कई आलोचको का कहना है कि इस योजना से हमारा वित्तीय बोझ बढ़ जायेगा। वर्तमान में 120000 करोड़ रूपये इस योजना का व्यय है जो आगे चलकर 150000 करोड़ रूपये हो जायेगा। यह कुल जीडीपी का मात्र 1.5 प्रतिषत है। साथ ही सरकार प्रतिवर्ष हजारो करोड़ रूपये की छूट उद्योगो को भी दे रही है।
दूसरी आलोचना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बडे पैमाने पर भ्रष्टाचार है और हितग्राहियों तक का पैसा पहुंचता ही नही है। इस आलोचना में वजन है परन्तु पिछले कुछ सालो के अनुभव ने हमे बताया है कि जिन राज्यो के मुख्यमंत्री गंभीर है वहां तकनीक का उपयोग कर चोरी रोक रहें है। साथ ही गुणवत्ता का भी पूरा ध्यान रखा गया है।
इस पूरे मामले में आलोचक इस बात को भूले जा रहे है कि आजादी के इतने सालो बाद भी कुपोषण हमारा पीछा नही छोड़ रहा है। पिछले 6 सालो में हमारे प्रदेष में 68 हजार अधिक बच्चे अति कुपोषित वर्ग में आ गये है। राज्य की भाजपा सरकार ने 2000 करोड़ रूपये खर्च जरूर किये है परन्तु आज भी मध्यप्रदेष में 15 लाख बच्चे कुपोषित है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा अध्यादेष न केवल पोषक भोजन लोगो तक पहुंचायेगा परन्तु गरीबी कम करने में भी सहायक होगा। पिछले 8 वर्षो में 22 प्रतिषत गरीबी कम हुई है। इस योजना के सहयोग से हम और अधिक तीव्रता से गरीबी और भुखमरी का सामना कर पायेगे।
सभी आलोचको से यह अनुरोध है कि तथ्यांे के आधार पर कार्यक्रम के बेहतर क्रियान्वयन पर सुझाव दे। हम लोकतंत्र के नागरिक है इसलिये महत्वपूर्ण मुद्वो पर हम बहस कर सकते है। परन्तु बहस रचनात्मक हो यह जरूरी है।
जन - जन की यही पुकार
खाद्य सुरक्षा है हमारा अधिकार
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