समाज में बढता वैशीपन
पिछले दिनों देल्हि में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उसके मित्र को भी पिटा गया। दोनों को चलती बस से फेक दिया गया। डॉक्टर ने कहा की उन्होंने ब्लाल्त्कर के किसी भी केस में इतनी हिंसा नहीं देखी। आज के पेपर में खबर हैं की एक किशोरी ने दुसरे किशोरी को छोटी सी घटना पर मिटटी का तेल डालकर आग लगा दी। यह घटनाये अपवाद नहीं रह गयी हैं। रोज़ मर्रे में आजकल ऐसी खबरे सुनने को मिल रही हैं। जब सर्वंजनिक रूप से चर्चा की जाती हैं तो आमतोर से दो मत निकल कर आते हैं- एक हैं की आज के पत्रिकारिता इतनी सुद्रिड हो गे हैं इस कारण से सभी खबर बहार आ रही हैं और दूसरा पक्ष रुदिवादिता को दर्शाता हैं की लड़कियों की गलती हैं, उन्हें अपने रेहान सेहन में परिवर्तन करना चाहिए। मेरा मानना हैं की यह एक सामाजिक समस्या हैं जिसके लिए सामाजिक परिवर्तन अव्यशक हैं। हम दो भागों में विवेचना कर सकते हैं।
पेहला तो ये की लडको को घर में लड़किओं के प्रति सहनशील और सेंसिटिव करना बहुत अव्यशक। खासकर उन घरों में जहा बटिया नहीं हैं। मेरे शिक्षण के शेत्र में कई बार ऐसे मौके आये हैं जहां यह पाया गया की अच्छे संस्कारी घरो के लड़के भी लड़किओं का सम्मान नहीं करते और उन्हें उपभोग की वास्तु मानते हैं। वह पर माँ, बहिन, शिक्षक, पिता का रोल बहुत महतवपूर्ण हो जाता हैं। उन्हें यह बताना बहुत ज़रूरी हैं की लड़किया भी उत्त्ने ही सम्मान का पात्र हैं जितनी की लड़के। मनुष्य के रूप में सभी का सम्मान होना चाहिए। आप उनके सात प्रतियोगी के रूप में आ सकते हैं, इर्षा कर सकते हैं परन्तु वस्तु नहीं मान सकते हैं।
दूसरा पक्ष हैं आर्थिक आसमंता और टीवी के माध्यम से देख रहे चीज़ों का। आज समाज में अमीर और गरीब के बीच खाई इतनी बड़ी हो गयी हैं की इसे पाटना संभव नहीं दीखता। जो निर्धन हैं यह समाज के बाहरी चक्र मैं हैं वोह अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं और अपने रेहान सेहन मैं वही सब कुछ लाना कहते हैं जो दुसरे वर्ग के पास हैं। जब उन्हें वैसी नौकरी नहीं मिलती या अवसर नहीं मिलते हैं तो समाज में हिंसा बडती हैं। और महिलाये सॉफ्ट टारगेट हैं क्यूंकि शारीरिक रूप से वो पुरषों से पीछे हैं। टीवी का नाम मैंने इसलिए लिए क्यूंकि टीवी में जो धारावाहिक, विज्ञापन आदि दिखाए जाते हैं वो एक विशेष वर्ग के लिए हैं पर देखा सभी के द्वारा जाता हैं। ऐसे में सभी की इच्छाएं और महत्वकांक्षाएं बढ जाती हैं। जब वो इस रूमानी जीवन को नहीं पा पाते हैं तो वो असामाजिक कार्य करने लगते हैं। आज जो हमारे देश की परिस्थिति हैं वोह सकारात्मक और प्रोत्साहिक हैं परन्तु कही गंभीर चिंतन और परिवर्तन की अव्यशाकता हैं। हमारे शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन चाहिए और सामाजिक ढाचे में भी। हम 21वी शताब्दी के सब लाभ लेना चाहते हैं, 18वी शताब्दी की सोच के साथ तो संतुलन बैठ ही नहीं सकता।
युवाओं को आज महती भूमिका निभानी हैं। ऐसे कुकर्मों का सभी मंच से निंदा होनी चाहिए और आप अपने आस पास के पुरषों को सेंसिटिव कीजिये।
पिछले दिनों देल्हि में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उसके मित्र को भी पिटा गया। दोनों को चलती बस से फेक दिया गया। डॉक्टर ने कहा की उन्होंने ब्लाल्त्कर के किसी भी केस में इतनी हिंसा नहीं देखी। आज के पेपर में खबर हैं की एक किशोरी ने दुसरे किशोरी को छोटी सी घटना पर मिटटी का तेल डालकर आग लगा दी। यह घटनाये अपवाद नहीं रह गयी हैं। रोज़ मर्रे में आजकल ऐसी खबरे सुनने को मिल रही हैं। जब सर्वंजनिक रूप से चर्चा की जाती हैं तो आमतोर से दो मत निकल कर आते हैं- एक हैं की आज के पत्रिकारिता इतनी सुद्रिड हो गे हैं इस कारण से सभी खबर बहार आ रही हैं और दूसरा पक्ष रुदिवादिता को दर्शाता हैं की लड़कियों की गलती हैं, उन्हें अपने रेहान सेहन में परिवर्तन करना चाहिए। मेरा मानना हैं की यह एक सामाजिक समस्या हैं जिसके लिए सामाजिक परिवर्तन अव्यशक हैं। हम दो भागों में विवेचना कर सकते हैं।
पेहला तो ये की लडको को घर में लड़किओं के प्रति सहनशील और सेंसिटिव करना बहुत अव्यशक। खासकर उन घरों में जहा बटिया नहीं हैं। मेरे शिक्षण के शेत्र में कई बार ऐसे मौके आये हैं जहां यह पाया गया की अच्छे संस्कारी घरो के लड़के भी लड़किओं का सम्मान नहीं करते और उन्हें उपभोग की वास्तु मानते हैं। वह पर माँ, बहिन, शिक्षक, पिता का रोल बहुत महतवपूर्ण हो जाता हैं। उन्हें यह बताना बहुत ज़रूरी हैं की लड़किया भी उत्त्ने ही सम्मान का पात्र हैं जितनी की लड़के। मनुष्य के रूप में सभी का सम्मान होना चाहिए। आप उनके सात प्रतियोगी के रूप में आ सकते हैं, इर्षा कर सकते हैं परन्तु वस्तु नहीं मान सकते हैं।
दूसरा पक्ष हैं आर्थिक आसमंता और टीवी के माध्यम से देख रहे चीज़ों का। आज समाज में अमीर और गरीब के बीच खाई इतनी बड़ी हो गयी हैं की इसे पाटना संभव नहीं दीखता। जो निर्धन हैं यह समाज के बाहरी चक्र मैं हैं वोह अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं और अपने रेहान सेहन मैं वही सब कुछ लाना कहते हैं जो दुसरे वर्ग के पास हैं। जब उन्हें वैसी नौकरी नहीं मिलती या अवसर नहीं मिलते हैं तो समाज में हिंसा बडती हैं। और महिलाये सॉफ्ट टारगेट हैं क्यूंकि शारीरिक रूप से वो पुरषों से पीछे हैं। टीवी का नाम मैंने इसलिए लिए क्यूंकि टीवी में जो धारावाहिक, विज्ञापन आदि दिखाए जाते हैं वो एक विशेष वर्ग के लिए हैं पर देखा सभी के द्वारा जाता हैं। ऐसे में सभी की इच्छाएं और महत्वकांक्षाएं बढ जाती हैं। जब वो इस रूमानी जीवन को नहीं पा पाते हैं तो वो असामाजिक कार्य करने लगते हैं। आज जो हमारे देश की परिस्थिति हैं वोह सकारात्मक और प्रोत्साहिक हैं परन्तु कही गंभीर चिंतन और परिवर्तन की अव्यशाकता हैं। हमारे शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन चाहिए और सामाजिक ढाचे में भी। हम 21वी शताब्दी के सब लाभ लेना चाहते हैं, 18वी शताब्दी की सोच के साथ तो संतुलन बैठ ही नहीं सकता।
युवाओं को आज महती भूमिका निभानी हैं। ऐसे कुकर्मों का सभी मंच से निंदा होनी चाहिए और आप अपने आस पास के पुरषों को सेंसिटिव कीजिये।
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